शब्दों के जादूगर तुषार सिंह का असहिष्णुता पर लिखा गया मर्यादित लेख । कृपया टिप्पणी करने में भी मर्यादा बनाये रखें ये मेरा मित्रों से विशेष आग्रह है ॥
तुम्हारे आदाब के अभिवादन का उत्तर नमस्कार से देते ही मैं कट्टर हो जाता हूँ अगर सरस्वती शिशु मंदिर में पढ़ता हूँ तो संघी हूँ अगर धोती कुरता पहनता हूँ तो भारतीय नहीं रहता तुरंत हिन्दू हो जाता हूँ तिलक लगाने से मुझे डर है कहीं भगवा आतंकी न घोषित हो जाऊँ
मैं अपने ही देश में अपने तौर तरीके से क्यों नहीं रह सकता,मेरी पहचान छीनी जा रही है क्यों?
मुझे मेरे ही घर से निकालने की ये आखिर किसकी साजिश है ?
आकाशवाणी जाता हूँ तो वहाँ UGC से मान्यता प्राप्त होने के बावजूद ज्योतिर्विज्ञान (ज्योतिष) पे आधारित लेख नहीं पढ़ सकता हमारा विज्ञान भी सांप्रदायिक करार दे दिए गया पांच हज़ार साल पुराने हमारे ज्ञान के भंडार वेद आदि कल की आई तुम्हारी एक किताब के नीचे क्यों दबाये जा रहे हैं क्यूँ मुझे अपने ज्ञान की मान्यता के लिए अपने ही देश के कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं तब कहीं जाकर विश्वविद्यालयों में वो दया के तौर पे पढ़ाये जाते हैं
सरकार बहुमत से चुनी जाती है और वो काम करती है अल्पसंख्यक कल्याण के लिए क्यों? अगर हम बहुसंख्यक हैं और हमारे बहुमत से चुनी हमारी सरकार हमारे ही कल्याण के लिए योजनाएँ क्यों नहीं बना सकती?
क्यों हमें अपने पवित्र पशु गाय की रक्षा के लिए बकरी की तरह मिमियाना पड़ता है?
क्यों मुझे हिंदुत्व की बात कहने के लिए भारतीयता का आवरण ओढ़ना पड़ता है? हम अपने धर्म की बात आखिर अपनी ही मातृभूमि पे क्यों नहीं कर सकते? क्यों मुझे ही सर्वधर्म समभाव की बात करनी पड़ती है क्यों मैं अपने धर्म की बात दृढ़ता से कहने पे कट्टर हो जाता हूँ?
इन सारे क्यों का उत्तर है एक क्योंकि हम सहिष्णु हैं इसलिए क्योंकि हम वसुधैव कुटुम्बकम् की नीति को मानने वाले हैं तुम उन्हें असहिष्णु कह रहे हो जिनके पूर्वज युद्ध भी नियमों से किया करते थे सूर्यास्त के बाद शत्रु चाहे बगल में भी हो उसका वध नहीं करते थे निहत्ते पे वार नहीं करते थे हमारी इन्हीं अच्छाइयों के कारण हम पराजित हुए क्योंकि हम युद्ध में भी सहिष्णु थे जिसका परिणाम आज ये है कि तुम हमें असहिष्णु कह पा रहे हो
पृथ्वीराज चौहान क्यों तुम असहिष्णु न हुए और पहली ही बार में पराजित गोरी का सर धड़ से अलग क्यों न कर दिया ?
तुम अभिनेता हो और मेरे थोड़े से मित्र भी पर एक बात बताओ अगर राष्ट्र में इतनी ही असहिष्णुता रही है तो तुम मुस्लिम होने के बावजूद इतने बड़े सितारे कैसे बन गए? ठीक है तुम अवार्ड वापस करो पर पहले हम जैसे सभी असहिष्णुओं के वो पैसे वापस करो जो हमने तुम्हारी सारी फिल्मों के टिकेट पे खर्च किये थे सब समझ आ जायेगा जब पदक की जगह भिक्षा पात्र हाथ में आ जायेगा
पहनाई गई फूलों की माला को वापस करने से सम्मान वापस नहीं होता अगर पुरस्कार वापस करना है तो पुरस्कार देने में लगा वो सारा समय भी वापस करो नहीं तो ये स्वांग बंद करो।
अपने लिए विशेष दर्जा मांग कर समानता की बात करना जायज है क्यों ??
(मैंने पूरी शालीन भाषा में अपनी बात रखी है कृपया इस पोस्ट की मर्यादा बनाये रखें अपशब्दों का प्रयोग नपुंसक करते हैं ये ध्यान रहे शेयर करते समय भी भाषा की मर्यादा बनाये रखने को बोलें क्योंकि अपशब्द शब्दों की चोट को कमजोर करते हैं )
#मैं_सहिष्णु_हूँ_नपुंसक_नहीं
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