Wednesday, 30 March 2016

सेक्युलरिजम हिंदुओ के लिए बना काल

भारतीय इतिहास के सबसे बड़े सेक्युलर राजा की विनाश-गाथा
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जब उत्तर भारत ख़िलजी, तुग़लक़, ग़ोरी, सैयद, बहमनी और लोदी वंश के विदेशी मुसलमानों के हाथों रौंदा जा रहा था तब भी दक्षिण भारत के "विजयनगर साम्राज्य" (1336-1665) ने 300 से अधिक वर्षों तक दक्षिण मे हिन्दू अधिपत्य कायम रखा ! इसी विजयनगर साम्राज्य के महाप्रतापी राजा थे "कृष्णदेव राय" ।
बाबरनामा, तुज़के बाबरी सहित फ़रिश्ता, फ़ारस के यात्री अब्दुर्रज्जाक ने "विजयनगर साम्राज्य" को भारत का सबसे वैभवशाली, शक्तिशाली और संपन्न राज्य बताया है, जहां हिन्दू-बौद्ध-जैन धर्मामलंबी बर्बर मुस्लिम आक्रान्ताओं से खुद को सुरक्षित पाते थे । जिनके दरबार के 'अष्ट दिग्गज' में से एक थे महाकवि "तेनालीराम", जिनकी तेलगू भाषा की कहानियों को हिन्दी-उर्दू मे रूपांतरित कर "अकबर-बीरबल" की झूठी कहानी बनाई गयी ।
इसी शक्तिशाली साम्राज्य मे एक "सेक्युलर राजा रामराय" का उदय हुआ, जिस "शक्तिशाली विजयनगर साम्राज्य" पर 300 साल तक विदेशी आक्रांता गिद्ध आंख उठा कर देखने की हिम्मत नही कर सके थे, उसे एक सेक्युलर सोच ने पल भर मे खंडहर मे तब्दील कर दिया ।
राजा कृष्णदेव राय की 1529 मे मृत्यु के 12 साल बाद "राम राय" विजयनगर" के राजा बने । रामराय पडले दर्जे के सेक्युलरवादी थे, सर्वधर्मसमभाव और हिन्दू-मुस्लिम एकता मे विश्वास रखने वाले रामराय ने दो गरीब अनाथ बेसहारा मुस्लिम भाइयों को गोद लिया । इन दोनो मुस्लिम भाइयों को न सिर्फ अपने बेटे का दर्जा दिया बल्कि उनके लिये महल प्रांगण मे ही मस्जिद बनबा कर दिया ।
ऐसे राजा रामराय के शासनकाल मे "विजयनगर साम्राज्य" की सैन्य शक्ति मे कोई कमी नही आई थी, कहा जाता है उनकी सेना मे 2 लाख सिपाही थे । अकेले विजयनगर से जीत पाने मे असमर्थ मुस्लिम आक्रान्ताओं ने 1567 में "जिहाद" का नारा देकर एक साथ आक्रमण किया ।
जिहाद के नारे के साथ 4 मुसलिम राज्यों ( अहमदनगर, बीजापुर, गोलकुण्डा और बीदर ) ने एक साथ विजयनगर पर हमला किया, इस युद्ध को राक्षस-टंग़ड़ी' या "तालीकोटा का युद्ध" कहा जाता है । 4 मुस्लिम राज्यों के सम्मिलित आक्रमण के बावजूद विजयनगर युद्ध जीत चुका था पर एन मौके पर राजा रामराय के गोद लिये दोनो लड़कों ने रामराय पर पीछे से वार कर दिया और कत्ल कर दिया ।
रामराय के गोद लिये बेटों के हाथों मारे जाते ही मुस्लिम सेनयों ने भयंकर मार-काट मचा दिया, लगातार 3 दिनों तक विजयनगर के स्त्री-पुरुष-बच्चे बेदर्दी से कत्ल किये गये, जिसकी सांख्या 1 लाख से ज्यादा बताई जाती है, विजयनगर को आग लगाकर नष्ट कर दिया गया । इस प्रकार एक सेक्युलर सोच ने समृद्ध-सक्षम हिन्दू साम्राज्य का अंत कर दिया ! इसी महान साम्राज्य के खंडहरों पर खड़ा है आज का शहर "हम्पी", जिसे यूनेस्को ने विश्व धरोहर विरासत के रूप मे दर्ज किया है ।
इतिहास गवाह है --अपने माता-पिता सहित पूर्वजों के माथे के कलंक ये सेक्युलर प्राणी जन्म ही कुल-खानदान, स्वधर्म, मातृभूमि का नाश करने के लिये लेते है।

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क्या करोगे हिन्दुओं इतनी संपत्ति कमाकर?
-एक दिन पूरे काबुल (अफगानिस्तान) का व्यापार सिक्खों का था,
आज उस पर तालिबानों का कब्ज़ा है |
-सत्तर साल पहले पूरा सिंध सिंधियों का था,
आज उनकी पूरी धन संपत्ति पर
पाकिस्तानियों का कब्ज़ा है |
-एक दिन पूरा कश्मीर धन धान्य और एेश्वर्य से पूर्ण पण्डितों का था, तुम्हारे उन महलों और झीलों पर आतंक का कब्ज़ा हो गया और तुम्हें मिला दिल्ली में दस बाय दस का टेंट..|
-एक दिन वो था जब ढाका का हिंदू बंगाली पूरी दुनिया में जूट का सबसे बड़ा कारोबारी था |
आज उसके पास सुतली बम भी नहीं बचा |
-ननकाना साहब,
लवकुश का लाहौर,
दाहिर का सिंध,
चाणक्य का तक्षशिला,
ढाकेश्वरी माता का मंदिर
देखते ही देखते सब पराये हो गए |
पाँच नदियों से बने पंजाब में अब केवल दो ही नदियाँ बची |
-यह सब किसलिए हुआ?
केवल और केवल
असंगठित होने के कारण,
इस देश के मूल समाज
की सारी समस्याओं की
जड़ ही संगठन का अभाव है |
-आज इतना आसन्न संकट देखकर भी बहुतेरा समाज गर्राया हुआ है |
कोई व्यापारी असम के चाय के बागान अपना समझ रहा है, कोई आंध्रा की खदानें अपनी मान रहा है तो कोई सूरत में सोच रहा है ये हीरे का व्यापार सदा सर्वदा उसी का रहेगा |
-कभी कश्मीर की केसर-क्यारियों के बारे में भी हिंदू यही सोचा करता था |
-तू अपने घर भरता रहा और पूर्वांचल का लगभग पचहत्तर प्रतिशत जनजाति समाज विधर्मी हो गया।
बहुत कमाया तूने बस्तर के जंगलों से...
आज वहाँ घुस भी नहीं सकता |
आज भी आधे से ज्यादा समाज को तो ये भी समझ नहीं कि उस पर क्या संकट आने वाला है ??
बचे हुए समाज में से बहुत से अपने आप को सेकुलर मानता है|
कुछ समाज लाल गुलामों का मानसिक गुलाम बनकर अपने ही समाज के खिलाफ कहीं बम बंदूकें, कहीं तलवार तो कहीं कलम लेकर विधर्मियों से जे यादा हानि पहुंचाने में जुटा है|
ऐसे में पाँच से लेकर दस प्रतिशत ही बचता है जो अपने धर्म और राष्ट्र के प्रति संवेदनशील है, धूर्त सेकुलरों ने उसे असहिष्णु और साम्प्रदायिक करार दे दिया|
इसलिए आजादी के बाद एक बार फिर हिंदू समाज दोराहे पर खड़ा है |
एक रास्ता है,
शुतुरमुर्ग की तरह आसन्न संकट को अनदेखा कर रेत में गर्दन गाड़ लेना तथा दूसरा -
तमाम संकटों को भांपकर सारे मतभेद भुलाकर संगठित हो संघर्ष कर अपनी धरती और संस्कृति को बचाना|
Be united, be aware, be safe!

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BMARU STATE

BIMARU states

Bihar, Madhya Pradesh, Rajasthan, and Uttar Pradesh.
BIMARU is an acronym formed from the first letters of the names of the states. It was coined by Ashish Bose in the mid-1980s. BIMARU has a resemblance to a Hindi word "Bimar" which means sick. This was used to refer to the poor economic conditions within those states. Several studies, including those by the UN, showed that the performance of the BIMARU states were dragging down the GDP growth rate of India. Some of these states are also a part of Red Corridor. Since some of these states have now started to advance faster than some of the developed states, the concept of BIMARU is starting to become outdated

ISO

ISO, the International Organization for Standardization. We develop and publish International Standards.

Popular standards

ISO 9000 Quality management
ISO 14000 Environmental management
ISO 3166 Country codes
ISO 26000 Social responsibility
ISO 50001 Energy management
ISO 31000 Risk management
ISO 22000 Food safety management
ISO 27001 Information security management
ISO 45001 Occupational health and safety
ISO 37001 Anti bribery management systems
ISO 13485 Medical devices

ISI / BIS

Indian standard institute

(Bureau of Indian Standards
since Jan 1 1987)

Certifying agency Bureau of Indian Standards

Effective region India

Effective since 1955

Product category Industrial products
Legal status Mandatory for 90 products (Feb 2013), voluntary for others
ISI mark is a certification mark for industrial products in India. The mark certifies that a product confirms to the Indian Standard,mentioned as IS:xxxx on top of the mark, developed by the Bureau of Indian Standards (BIS), the national standards body of India.[1][2] The ISI mark is by far the most recognized certification mark in the Indian subcontinent. The name ISI is an abbreviation of Indian Standards Institute, the former name of the Bureau of Indian Standards. The ISI mark is mandatory for certifying products to be sold in India, like many of the electrical appliances[3] viz; switches, electric motors, wiring cables, heaters, kitchen appliances etc., and other products like portland cement, LPG valves, LPG cylinders, automotive tyres[4] etc. But in the case of most other products it is voluntary.

Tuesday, 29 March 2016

Unichef

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ( अंग्रेज़ी : यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस फंड, लघुनाम: यूनीसेफ ) की स्थापना का आरंभिक उद्देश्य द्वितीय विश्व युद्ध में नष्ट हुए राष्ट्रों के बच्चों को खाना और स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना था। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र की महासभा ने
११ दिसंबर , १९४६ को की थी।[1] १९५३ में यूनीसेफ, संयुक्त राष्ट्र का स्थाई सदस्य बन गया। उस समय इसका नाम यूनाइटेड नेशंस इंटरनेशनल चिल्ड्रेंस फंड की जगह यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस फंड कर दिया गया।[2] इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क में है। वर्तमान में इसके मुखिया ऐन वेनेमन है। यूनीसेफ को १९६५ में उसके बेहतर कार्य के लिए शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। १९८९ में संगठन को इंदिरा गाँधी शांति पुरस्कार भी प्रदान किया गया था। [3] इसके १२० से अधिक शहरों में कार्यालय हैं और १९० से अधिक स्थानों पर इसके कर्मचारी कार्यरत हैं। वर्तमान में यूनीसेफ फंड एकत्रित करने के लिए विश्व स्तरीय एथलीट और टीमों की सहायता लेता है।
यूनीसेफ का सप्लाई प्रभाग कार्यालय
कोपनहेगन , डेनमार्क में है। यह कुछ महत्वपूर्ण सामान जैसे जीवन रक्षक टीके, एचआईवी पीड़ित बच्चों व उनकी माताओं के लिए दवा, कुपोषण के उपचार के लिए दवाइयां, आकस्मिक आश्रय आदि के वितरण की प्राथमिक जगह होती है। ३६ सदस्यों का कार्यकारी दल यूनीसेफ के कामों की देखरेख करता है। [1] यह नीतियाँ बनाता है और साथ ही यह वित्तीय और प्रशासनिक योजनाओं से जुड़े कार्यक्रमों को स्वीकृति प्रदान करता है। वर्तमान में यूनीसेफ मुख्यत: पांच प्राथमिकताओं पर केन्द्रित है। बच्चों का विकास, बुनियादी शिक्षा, लिंग के आधार पर समानता (इसमें लड़कियों की शिक्षा शामिल है), बच्चों का हिंसा से बचाव, शोषण, बाल-श्रम के विरोध में, एचआईवी एड्स और बच्चों, बच्चों के अधिकारों के वैधानिक संघर्ष के लिए काम करता है।

विदेशी कर्ज का बढ़ता दलदल


विदेशी कर्ज का बढ़ता दलदल
हाल के वर्षो में अपेक्षाकृत ऊंची संवृद्धि दर के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था की आकर्षक तस्वीर प्रस्तुत करने की कोशिश सरकार ने बार-बार की है.
पर अर्थव्यस्था की कई बुनियादी कमजोरियां किसी न किसी रूप में सामने आती ही रहती हैं. हाल में यह मुद्दा काफी उभर कर सामने आया है कि भारत की विदेशी कर्जदारी बहुत तेजी से बढ़ रही है. वित्तीय वर्ष 2012-13 अंत में स्थिति यह थी कि अगले एक वर्ष के भीतर यानी कि मार्च, 2014 तक भारत को 172 अरब डॉलर विदेशी कर्ज का भुगतान करना था.
यदि इसकी तुलना में मार्च, 2008 की स्थिति को देखें तो उस समय अगले एक वर्ष में 55 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज का भुगतान करना था. दूसरे शब्दों में विदेशी कर्ज के भुगतान का भार मात्र पांच वर्षो में तीन गुणा से भी अधिक बढ़ गया है. जहां मार्च, 2008 में अगले एक वर्ष में चुकाया जाने वाला विदेशी कर्ज देश के कुल विदेशी मुद्रा भंडार के 17 प्रतिशत के बराबर था; वहीं मार्च, 2013 में अगले एक वर्ष में चुकाई जाने वाली विदेशी कर्ज की राशि देश के कुल विदेशी मुद्रा भंडार के 60 प्रतिशत के बराबर हो चुकी थी. इससे पता चलता है कि विदेशी कर्ज की अदायगी के संदर्भ में भारत की स्थिति कितनी चिंताजनक हो चुकी है.
इस संदर्भ में काफी पहले से अधिक सावधान होने की सख्त जरूरत थी, पर सरकार ने ऐसा नहीं किया. विश्व व्यापार संगठन की स्थापना के साथ ही देश में आयात शुल्क कम करने और आयात तेजी से बढ़ने की भूमिका तैयार हो गई थी, जो आज तक अपना असर दिखा रही है. इसकी तुलना में निर्यात बढ़ नहीं सके हैं. इस तरह अब व्यापार के घाटे का संकट उत्पन्न होने की अनुकूल स्थिति तो तैयार हो ही चुकी है. निजी कंपनियों द्वारा लिए गए विदेशी कर्ज के कारण स्थिति और विकट हो गई है. जिस तरह सोने का आयात बहुत होने दिया गया, उससे भी यह स्थिति विकट हुई है. बहुत देर से सरकार ने इस संदर्भ में थोड़ा-बहुत प्रयास किया है, पर यह पर्याप्त नहीं है और बहुत देरी से किया गया है.
यह विचारणीय सवाल है कि जिन आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में हम निश्चित तौर पर सक्षम हैं उनका आयात क्यों बढ़ने दिया गया है! दलहन और तिलहन इसका स्पष्ट और बड़ा उदाहरण हैं. यदि हम इतने बड़े कृषि क्षेत्र और पर्याप्त कुशलताओं के बावजूद दालों और खाद्य तेलों में भी आत्मनिर्भरता नहीं प्राप्त कर पाए हैं, तो इस बारे में सवाल उठाना जरूरी है कि इस अक्षमता के क्या कारण हैं. क्या यह दुख की बात नहीं है कि आज बच्चों के खिलौने भी अधिकतर चीन से ही आयात हो रहे हैं. ऐसा क्यों है? अपने देश में बेहतरीन सेब की उपलब्धि के बावजूद दूर-दूर के देशों के सेब धड़ल्ले से हमारे बाजार में छा रहे हैं. ऐसा क्यों है? आखिर कितना आयात बोझ अर्थव्यवस्था सह सकेगी?
तिस पर इस बात के पूरे संकेत हैं कि आयातों के लिए स्थितियां पहले से भी और अधिक सुविधाजनक बनाने के लिए भारत जैसे विकासशील देशों पर विश्व व्यापार संगठन की ओर से दबाव पड़ रहा है. इस स्थिति में भारत को इस बारे में महत्वपूर्ण निर्णय लेने ही होंगे कि वह आयातों का अनावश्यक बोझ कैसे कम करे और इस संदर्भ में अपने स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता की भी रक्षा करे. बीच-बीच में बेहतर मुनाफे की तलाश में अस्थिर व अल्पकालीन विदेशी निवेश का आगमन भारतीय अर्थव्यवस्था में बढ़ जाता था, तो इससे अर्थव्यवस्था व विशेषकर विदेशी भुगतान की स्थिति की एक कृत्रिम तौर पर बेहतरी की तस्वीर प्रस्तुत हो जाती थी. इसका प्रचार-प्रसार इस रूप में किया जाता था कि सरकार की आर्थिक नीतियां बहुत सफल हो रही हैं. पर इस तरह की कृत्रिम उपलब्धियों की वास्तविक सच्चाई तो सामने शीघ्र ही आ जाती है. ‘हॉट मनी’ के कुछ समय के प्रवेश से कोई अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होती है, बल्कि वास्तविक मजबूती के लिए अर्थव्यवस्था के आधार को मजबूत बनाना होता है.
अर्थव्यवस्था की कमजोरी भारतीय रुपये की निरंतर गिरती कीमत के रूप में भी नजर आई. हालांकि सरकार ने इस बाबत भी अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ते हुए यही कहा कि इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्थितियां या अमेरिकी नीतियां जिम्मेदार हैं, जबकि जरूरत अपनी अर्थव्यवस्था की कमजोरियों पर ध्यान देने की है. रुपये की कीमत गिरने के परिणामों को कम करने व देखने की प्रवृत्ति भी उचित नहीं है.

हकीकत तो यह है कि बढ़ते भूमंडलीकरण और बढ़ते आयातों की स्थिति में आम लोगों पर इसका पहले से अधिक प्रतिकूल असर पड़ेगा और महंगाई की प्रवृत्ति और तेज होगी.
पिछले अनुभव के आधार पर अब जरूरत यह है कि अर्थव्यवस्था को बुनियादी तौर पर मजबूत करने पर ध्यान दिया जाए. इसके लिए विदेशी निर्भरता को कम करते हुए आत्मनिर्भरता व स्वावलंबन की नीतियां अपनाना जरूरी है. किसानों, मजदूरों, दस्तकारों और छोटे उद्यमियों की आजीविका को मजबूत करने और देश के प्राकृतिक संसाधनों जल-जंगल-जमीन की रक्षा के साथ जुड़ी आजीविका की रक्षा करना भी जरूरी है. तरह-तरह के विदेशी कर्ज के जाल में उलझाने वाली नीतियों व परियोजनाओं और अनावश्यक आयातों से बचना आवश्यक है.
तथाकथित आर्थिक सुधारों में नाम पर हमारे देश में ऐसी अनेक नीतियां अपनाई गई हैं जिन्होंने ऊपरी तौर पर कुछ चमक-दमक चाहे दिखाई हो, पर मूल रूप से अर्थव्यवस्था की बुनियाद को कमजोर किया है. स्थिति जरा-सी प्रतिकूल होते ही अब यह कमजोरियां सामने आ रही हैं. इससे पहले कि हमारा देश विदेशी कर्ज की दलदल में पूरी तरह फंस जाए, अर्थव्यवस्था की इन कमजोरियों को दूर करने के लिए समुचित कदम उठाना जरूरी है. अर्थव्यवस्था में वास्तविक सुधार ऐसे होने चाहिए जिनसे देश के निर्धन वर्ग की आय व क्रयशक्ति में महवपूर्ण वृद्धि हो, साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थव्यवस्था में ऐसी मजबूती आए जो भूमंडलीकरण के इस दौर से जुड़े उतार-चढ़ाव का सामना भलीभांति कर सके.

अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ( अंग्रेज़ी :International Monetary Fund;
इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड , लघुरूप:IMF; आईएमएफ ) एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है, जो अपने सदस्य देशों की वैश्विक आर्थिक स्थिति पर नज़र रखने का काम करती है। यह अपने सदस्य देशों को आर्थिक और तकनीकी सहायता प्रदान करती है। यह संगठन अन्तर्राष्ट्रीय विनिमय दरों को स्थिर रखने के साथ-साथ विकास को सुगम करने में सहायता करता है। [2] इसका मुख्यालय
वॉशिंगटन डी॰ सी॰ , संयुक्त राज्य में है। इस संगठन के प्रबंध निदेशक डॉमनिक स्ट्रॉस है। आईएमएफ की विशेष मुद्रा एसडीआर (स्पेशल ड्राइंग राइट्स) है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और वित्त के लिए कुछ देशों की मुद्रा का इस्तेमाल किया जाता है, इसे एसडीआर कहते हैं। एसडीआर में यूरो , पाउंड , येन और डॉलर हैं। आईएमएफ की स्थापना १९४४ में की गई थी। विभिन्न देशों की सरकार के ४५ प्रतिनिधियों ने अमेरिका के ब्रिटेन वुड्स में बैठक कर अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक समझौते की रूपरेखा तैयार की थी। २७ दिसंबर , १९४५ को २९ देशों के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद आईएमएफ की स्थापना हुई।

आईएमएफ के कुल १८६ सदस्य देश हैं। २९ जून २००९ को कोसोवो गणराज्य १८६वें देश के रूप में शामिल हुआ था।[3][4] आईएमएफ का उद्देश्य आर्थिक स्थिरता सुरक्षित करना, आर्थिक प्रगति को बढ़ावा देना, गरीबी कम करना, रोजगार को बढ़ावा देना और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सुविधाजनक बनाना है। सदस्य देशों की संख्या बढ़ने के साथ वैश्विक अर्थ-व्यवस्था में आईएमएफ का कार्य काफी बढ़ा है। कोई भी देश आईएमएफ की सदस्यता के लिए आवेदन कर सकता है। पहले यह आवेदन आईएमएफ के कार्यपालक बोर्ड द्वारा विचाराधीन भेजी जाती है। इसके बाद कार्यकारी बोर्ड, बोर्ड ऑफ गर्वनेस को उसकी संस्तुति के लिए भेजता है। वहां स्वीकृत होने पर सदस्यता मिल जाती है।

विश्व बैंक

विश्व बैंक संयुक्त राष्ट्र की विशिष्ट संस्था है। इसका मुख्य उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों को पुनर्निमाण और विकास के कार्यों में आर्थिक सहायता देना है। विश्व बैंक समूह पांच अन्तर राष्ट्रीय संगठनो का एक ऐसा समूह है जो देशो को वित्त और वित्तीय सलाह देता है। इस्के उद्देश्य निम्न है -
विश्व को आर्थिक तरक्की के रास्ते पर ले जाना।
विश्व मे गरीबी को कम करना।
अंतरराष्ट्रीय निवेश को बढावा देना।
विश्व बैंक समूह के मुख्यालय वाशिंगटन में है। विश्व बैंक के एक अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्था है कि ऋण प्रदान करता है है। [2] पूंजी कार्यक्रमों के लिए विकासशील देशों के लिए. विश्व बैंक की आधिकारिक लक्ष्य गरीबी की कमी है। कानून के अनुसार, [जो?] अपने फैसले के सभी विदेशी निवेश, अंतरराष्ट्रीय व्यापार को बढ़ावा देने और पूंजी निवेश की सुविधा प्रतिबद्धता के द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए. [3] विश्व बैंक विश्व बैंक समूह से अलग है, कि विश्व बैंक केवल दो संस्थानों को शामिल: अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास (आईबीआरडी) और इंटरनेशनल डेवलपमेंट एसोसिएशन (आईडीए) के लिए बैंक, जबकि बाद इन दोनों के अलावा तीन और में शामिल [4] अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी), बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA) और निवेश विवाद (ICSID) के निपटान के लिए इंटरनेशनल सेंटर. इतिहास
जॉन मेनार्ड कीन्स (दाएं) सम्मेलन में यूनाइटेड किंगडम का प्रतिनिधित्व किया और हैरी Dexter व्हाइट (बाएं) संयुक्त राज्य अमेरिका का प्रतिनिधित्व. विश्व बैंक 1944 में Bretton वुड्स सम्मेलन में बनाई गई पांच संस्थानों की है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, एक संबंधित संस्था, दूसरे नंबर पर है। कई देशों से प्रतिनिधि Bretton वुड्स सम्मेलन में भाग लिया। उपस्थिति में सबसे शक्तिशाली देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम, जो वार्ता प्रभुत्व थे। [5] हालांकि दोनों वाशिंगटन, डीसी में आधारित हैं, कस्टम, एक अमेरिकी की अध्यक्षता में विश्व बैंक है, है, जबकि आईएमएफ के नेतृत्व में है एक यूरोपीय. 1944-1968 [संपादित करें] अपनी अवधारणा से 1967 तक बैंक उधार की एक अपेक्षाकृत कम स्तर पर चलाया। राजकोषीय रूढ़िवाद और ऋण आवेदनों के सावधान स्क्रीनिंग आम था। बैंक कर्मचारियों को बैंक में विश्वास पैदा करने की आवश्यकता के साथ पुनर्निर्माण और विकास के लिए ऋण उपलब्ध कराने की प्राथमिकताओं संतुलन करने का प्रयास [6]. बैंक के अध्यक्ष जॉन McCloy फ्रांस विश्व बैंक सहायता की पहली प्राप्तकर्ता के लिए चयनित, पोलैंड और चिली से दो अन्य अनुप्रयोगों को खारिज कर दिया गया। ऋण 250 मिलियन अमरीकी डॉलर के लिए था, आधी राशि का अनुरोध किया और कड़ी शर्तों के साथ आया था। विश्व बैंक से कर्मचारी धन के उपयोग पर नजर रखी, यह सुनिश्चित करना है कि फ्रांसीसी सरकार ने एक संतुलित बजट पेश और अन्य सरकारों से अधिक विश्व बैंक के लिए ऋण चुकौती की प्राथमिकता देना होगा. संयुक्त राज्य अमेरिका राज्य विभाग फ्रांसीसी सरकार से कहा कि मंत्रिमंडल के भीतर कम्युनिस्ट तत्वों को हटाया जा जरूरत है। फ्रांसीसी सरकार को इस निर्देश के साथ अनुपालन और कम्युनिस्ट गठबंधन सरकार हटा दिया. फ्रांस करने के लिए ऋण घंटे के भीतर अनुमोदित किया गया था। [7] मार्शल योजना 1947 के कारण बैंक द्वारा ऋण को बदलने के रूप में कई यूरोपीय देशों को सहायता कि विश्व बैंक ऋण के साथ competed प्राप्त. गैर - यूरोपीय देशों के लिए जोर स्थानांतरित किया गया और 1968 तक, ऋण परियोजनाओं है कि एक उधारकर्ता देश सक्षम ऋण (बंदरगाहों, राजमार्ग प्रणाली और बिजली संयंत्रों के रूप में ऐसी परियोजनाओं) चुकाने के लिए निर्धारित किए गए थे। 1968-1980 [संपादित करें] 1968 से 1980 तक बैंक विकासशील देशों में लोगों की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर [प्रशस्ति पत्र की जरूरत] और उधारकर्ताओं को ऋण की संख्या और आकार बहुत ऋण लक्ष्य के रूप में सामाजिक सेवाओं और अन्य क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे से विस्तार बढ़ा दिया गया था। प्रशस्ति पत्र [केंद्रित. जरूरत] इन परिवर्तनों रॉबर्ट McNamara जो Lyndon बी जॉनसन द्वारा 1968 में राष्ट्रपति पद के लिए नियुक्त किया गया है के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। [8] McNamara बैंक है कि वह संयुक्त राज्य अमेरिका की रक्षा और राष्ट्रपति के सचिव फोर्ड मोटर के रूप में इस्तेमाल किया था करने के लिए एक technocratic प्रबंधकीय शैली का आयात कंपनी [9] McNamara बैंक नीति निर्माण स्कूलों और अस्पतालों के रूप में इस तरह के उपायों की ओर स्थानांतरित कर दिया, साक्षरता और कृषि सुधार में सुधार. McNamara संभावित उधारकर्ता राष्ट्रों है कि बैंक ऋण आवेदन प्रक्रिया के लिए बहुत तेजी से सक्षम से जानकारी जुटाने का एक नया सिस्टम बनाया. अधिक ऋण वित्त, McNamara बैंक कोषाध्यक्ष यूजीन Rotberg कहा कि बैंक धन के प्राथमिक स्रोत गया था उत्तरी बैंकों के बाहर राजधानी के नए स्रोतों की तलाश. Rotberg वैश्विक बांड बाजार का इस्तेमाल बैंक को उपलब्ध पूंजी को बढ़ाने के [10] गरीबी उन्मूलन उधार की अवधि का एक परिणाम तीसरी दुनिया के ऋण की तेजी से वृद्धि था। 1976 से 1980 तक विकासशील दुनिया ऋण 20% की एक औसत वार्षिक दर पर गुलाब. [11] [12] 1980 में, विश्व बैंक प्रशासनिक अधिकरण के लिए विश्व बैंक समूह और अपने स्टाफ के बीच विवादों जहां रोजगार या नियुक्ति की शर्तों के ठेके के अपालन के आरोप को सम्मानित नहीं किया गया था पर फैसला करने के लिए स्थापित किया गया था