Friday, 4 December 2015

महान व्यक्तित्व : लाल बहादुर शास्त्री

यह ऐसे प्रधानमंत्री हुए जिन्होंने 1965 मेंअपनी फीएट कार खरीदने के लिए पंजाब नेशनलबैंकसे पांच हजार ऋण लिया था। मगर ऋण की एककिश्तभी नहीं चुका पाए। 1966 में देहांत हो जाने परबैंक नेनोटिस भेजा तो उनकी पत्नी ने अपनी पेंशन केपैसे सेकार के लिए लिया गया ऋण चुकानेका वायदा किया और फिर धीरे धीरे बैंक के पैसेअदा किए। हम बात कर रहे हैं प्रधानमंत्री लालबहादुरशास्त्री की। उनकी पत्नी ललिता शास्त्री नेभी उनकी ईमानदार पूर्वक जिंदगी मेंउनका पूरा साथदिया। शास्त्री की यह कार आज भी जनपथस्थितउनकी कोठी [अब संग्रहालय] में आज भी मौजूदहै।अब इस कोठी में लालबहादुर शास्त्री संग्रहालयबना दिया गया है। पढ़ें:शास्त्री का अस्थि कलशसंग्रहालय में 'कैद' इस संग्रहालय में अनेकऐसी चीजेंप्रदर्शित की गई हैं।जो उनकी ईमानदारी को दर्शाती हैं। लोगयहां आकरउनकी सादगी और ईमानदारी भरी जिंदगी के बारेमेंजानकर भावुक हो जाते हैं। ऐसी एक घटना केबारे मेंबताना जरूरी हो जाता है। यह बात 1962 केकरीबकी है। उस समय शास्त्री जीअखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव थे।उससमय देश के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लालनेहरू थे।उन्हें पार्टी के किसी महत्वपूर्ण काम से कश्मीरजाना था। पंडित नेहरू ने उनसे जाने के लिएकहा तो वह लगातार मना कर रहे थे। पंडित नेहरूभी चकरा गए कि वह ऐसा क्यों कर रहे हैं। पंडितनेहरूउनका बहुत सम्मान करते थे। बाद में उन्होंनेवहां नहीं जाने के बारे में कारण पूछ ही लिया।पहलेतो वह बताने को राजी नहीं हुए, मगर बहुत कहनेपरउन्होंने जो कुछ कहा उसे सुनकर पंडित नेहरूकी भी आंखों में आंसू आ गए। शास्त्री जी नेबताया कि कश्मीर में ठंड बहुत पड़ रही है और मेरेपासगर्म कोट नहीं है। पंडित नेहरू ने उसी समयअपना कोट उन्हें दे दिया और यह बातकिसी को नहीं बताई। लाल बहादुर शास्त्री जबप्रधानमंत्री बने तो इसी कोट को पहनते रहे। इसप्रकार दो प्रधानमंत्री ने पहना यह कोट। उनकेलिएसमर्पित इस संग्रहालय में यह कोट प्रदर्शित है।इसी संग्रहालय में रखा गए हैप्रधानमंत्री का टूटा कंघा, टूटी टार्च, दाढ़ी बनानेवाली सामान्य मशीन, सामान्य ब्रस व अन्यसामान।जो वहां पहुंचने वाले हर व्यक्ति को चौंकाते हैंकि देशको ऐसा भी प्रधानमंत्री मिल चुका है।इसी संग्रहालयमें उनका शयन कक्ष है जिसमें एक तख्त औरकुछकुर्सियां मौजूद हैं। जो कहीं से भी किसी विशिष्ठव्यक्ति की नजर नहीं आतीं।
ऐसे थे लाल बहादुर.

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