Monday 29 May 2017

बम बम भोले

जयश्री राधेकृष्ण हर हर महादेव
II ॐ नमः शिवाय ।।
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प्रलयकाल के पश्चात सृष्टि के आरम्भ में भगवान नारायण की नाभि से एक कमल प्रकट हुआ और उस कमल से ब्रह्मा प्रकट हुए। ब्रह्मा जी अपने कारण का पता लगाने के लिये कमलनाल के सहारे नीचे उतरे। वहाँ उन्होंने शेषशायी भगवान नारायण को योगनिद्रा में लीन देखा। उन्होंने भगवान नारायण को जगाकर पूछा- 'आप कौन हैं?' नारायण ने कहा कि मैं लोकों का उत्पत्तिस्थल और लयस्थल पुरुषोत्तम हूँ। ब्रह्मा ने कहा- 'किन्तु सृष्टि की रचना करने वाला तो मैं हूँ।' ब्रह्माजी के ऐसा कहने पर भगवान विष्णु ने उन्हें अपने शरीर में व्याप्त सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का दर्शन कराया। इस पर ब्रह्मा जी ने कहा- 'इसका तात्पर्य है कि इस संसार के स्त्रष्टा मैं और आप दोनों हैं।'भगवान विष्णु ने कहा- 'ब्रह्माजी! आप भ्रम में हैं। सबके परम कारण परमेश्वर ईशान भगवान शिव को आप नहीं देख रहे हैं। आप अपनी योगदृष्टि से उन्हें देखने का प्रयत्न कीजिये। हम सबके आदि कारण भगवान सदाशिव आपको दिखायी देंगे। जब ब्रह्मा जी ने योगदृष्टि से देखा तो उन्हें त्रिशूल धारण किये परम तेजस्वी नीलवर्ण की एक मूर्ति दिखायी दी। उन्होंने नारायण से पूछा- 'ये कौन हैं? नारायण ने बताया ये ही देवाधिदेव भगवान महादेव हैं। ये ही सबको उत्पन्न करने के उपरान्त सबका भरण-पोषण करते हैं और अन्त में सब इन्हीं में लीन हो जाते हैं। इनका न कोई आदि है न अन्त। यही सम्पूर्ण जगत में व्याप्त हैं।' इस प्रकार ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु की कृपा से सदाशिव का दर्शन किया।
भगवान शिव का परिवार बहुत बड़ा है। एकादश रुद्राणियाँ, चौंसठ योगिनियाँ तथा भैरवादि इनके सहचर और सहचरी हैं।माता पार्वती की सखियों में विजया आदि प्रसिद्ध हैं।गणपति-परिवार में उनकी सिद्धि, बुद्धि नामक दो पत्नियाँ तथा क्षेम और लाभ दो पुत्र हैं। उनका वाहन मूषक है।भगवान कार्तिकेय की पत्नी देवसेना तथा वाहन मयूर है।भगवती पार्वती का वाहन सिंह है तथा भगवान शिव स्वयं धर्मावतार नन्दी पर आरूढ़ होते हैं।यद्यपि भगवान शिव सर्वत्र व्याप्त हैं, तथापि काशी और कैलास- ये दो उनके मुख्य निवास स्थान कहे गये हैं।भगवान शिव देवताओं के उपास्य तो हैं ही, साथ ही उन्होंने अनेक असुरों- अन्धक, दुन्दुभी, महिष, त्रिपुर, रावण, निवात-कवच आदि को भी अतुल ऐश्वर्य प्रदान किया।कुबेर आदि लोकपालों को उनकी कृपा से यक्षों का स्वामित्व प्राप्त हुआ। सभी देवगणों तथा ऋषि-मुनियों को दु:खी देखकर उन्होंने कालकूट विष का पान किया। इसी से वे नीलकण्ठ कहलाये। इस प्रकार भगवान शिव की महिमा और नाम अनन्त हैं।
उनके अनेक रूपों में उमामहेश्वर, अर्द्धनारीश्वर, पशुपति, कृत्तिवासा, दक्षिणामूर्ति तथा योगीश्वर आदि अति प्रसिद्ध हैं।महाभारत, आदिपर्व के अनुसार पांचाल नरेश द्रुपद की पुत्री द्रौपदी पूर्वजन्म में एक ऋषि कन्या थी। उसने श्रेष्ठ पति पाने की कामना से भगवान शिव की तपस्या की थी। शंकर ने प्रसन्न होकर उसे वर देने की इच्छा की। उसने शंकर से पाँच बार कहा कि वह सर्वगुणसंपन्न पति चाहती है। शंकरजी ने कहा कि अगले जन्म में उसके पाँच भरतवंशी पति होंगे, क्योंकि उसने पति पाने की कामना पाँच बार दोहरायी थी।[1]भगवान शिव की ईशान, तत्पुरुष, वामदेव, अघोर तथा अद्योजात पाँच विशिष्ट मूर्तियाँ और शर्व, भव, रुद्र, उग्र, भीम, पशुपति, ईशान और महादेव- ये अष्टमूर्तियाँ प्रसिद्ध हैं।सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमशंकर, विश्वेश्वर, त्र्यंबक, वैद्यनाथ, नागेश, रामेश्वर तथा घुश्मेश्वर– ये प्रसिद्ध बारह ज्योतिर्लिंग हैं।भगवान शिव के मन्त्र-उपासना में पंचाक्षर नम:शिवाय तथा महामृत्युंजय विशेष प्रसिद्ध है।इसके अतिरिक्त भगवान शिव की पार्थिव-पूजा का भी विशेष महत्त्व है।शिव हिन्दू धर्म के प्रमुख देवताओं में से हैं । वेद में इनका नाम रुद्र है। यह व्यक्ति की चेतना के अर्न्तयामी हैं । इनकी अर्द्धांगिनी (शक्ति) का नाम पार्वती और इनके पुत्र स्कन्द और गणेश हैं।शिव योगी के रूप में माने जाते हैं और उनकी पूजा लिंग के रूप में होती है ।भगवान शिव सौम्य एवं रौद्ररूप दोनों के लिए जाने जाते हैं ।सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति हैं। त्रिदेवों में भगवान शिव संहार के देवता माने जाते हैं । शिव का अर्थ कल्याणकारी माना गया है, लेकिन वे उनका लय और प्रलय दोनों पर समान अधिकार है।भक्त पूजन में शिव जी की आरती की जाती है।शिव जी के अन्य भक्तों में त्रिहारिणी भी थे और शिव जी त्रिहारिणी को अपने पुत्रों से भी अधिक प्यार करते थे।

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