Monday 5 December 2016

नाग भट्ट एवं बप्पा रावल

---नागभट्ट व बप्पा रावल का संयुक्त मोर्चा ---
=== भारत से अरबो का सर्वनाश ===
मित्रों पूर्व में हिरण्याक्ष नामक असुर ने धरती को रसातल मे डुबो दिया था , तब धरती को पाताल से मुक्त करने हेतु भगवान् वाराह (विष्णु भगवान) ने हिरण्याक्ष का वध किया और धरती को पाताल से बाहर निकाल कर उसका उद्धार किया ,जिस प्रकार वे धरती के रक्षक कहलाये ।
Varaha-Avatar यही एक कारण था ,की प्रतिहार/परिहार शासक आदिवाराह नाम से जाने लगे ,उनकी राजमुद्रा पर भी वराह का रूप अंकित उन्होंने करवाया क्योंकि वे भी भगवान् वाराह की तरह हिन्दुभूमि को म्लेच्छो के काल-पाश में जाने से बचा पाए थे ,और म्लेच्छो के अधिकार में गयी हुयी भूमि को उनसे वापस छीन कर उसका उद्धार करने में सफल हो पाए थे ।
इस्लाम की स्थापना तथा अरबो का रक्तरंजीत साम्राज्य विस्तार सम्पूर्ण विश्व के लिए एक भयावह घटना है , मोहम्मद पैगम्बर के मृत्यु के बाद अरबो का अत्यंत प्रेरणादायी रूप से समरज्यिक उत्थान हुआ ।
100 वर्ष भीतर ही उन्होंने पश्चिम में स्पेन से पूर्व में चीन तक अपने साम्राज्य को विस्तारित किया।
वे जिस भी प्रदेश को जित ते वहा के लोगो के पास केवल दो ही विकल्प रखते, या तो वे उनका धर्म स्वीकार कर ले या मौत के घाट उतरे । उन्होंने पर्शिया जैसी महान संस्कृतियों ,सभ्यताएं,शिष्टाचारो को रौंध डाला ,मंदिर,चर्च,पाठ
शालाए,ग्रंथालय नष्ट कर डाले। कला और संस्कृतियों को जला डाला सम्पूर्ण विश्व में हाहाकार मचा डाला।
ग्रीस,इजिप्त,स्पेन,अफ्रीका,इरान आदि महासत्ताओ को कुचलने के बाद अरबो के खुनी पंजे हिन्दुस्तान की भूमि तरफ बढे। कठिन परिश्रम के बाद अंतर्गत धोकाधाडियो से राजा दाहिर की पराजय हुयी और अरबो की सिंध के रूप में भारत में पहली सफलता मिली। सिंध विजय के तुरंत बाद अरबो ने सम्पूर्ण हिन्दुस्तान को जीतकर वहा की संस्कृति को नष्ट भ्रष्ट करने हेतु महत्वाकांक्षी सेनापति अब्दुल-रहमान-जुनैद-अलगारी और अमरु को सिंध का सुबेदार बनाकर भेजा।
जुनैद ने पुरे शक्ति के साथ गुजरात,मालवा और राजस्थान के प्रदेशो पर हमला बोल दिया। उस समय वहा बहोत सी छोटी रियासते राज्य करती थी। जैसलमेर के भाटी,अजमेर के चौहान,भीनमाल के चावड़ा आदि ने डट कर अरबी सेना का मुकाबला किया पर वे सफल नहीं हो पाए और एक के बाद एक टूटने लगे। जैसलमेर के भाटी शासको की पराजय के बाद वहा के प्रदेशो पर अरबो का अधिकार हो गया।
इन सबको हराकर जुनैद ने मालवा पर आक्रमण कर दिया,जहा की राजधानी थी उज्जैन,जहा प्रतिहार/परिहार राजपूत साम्राज्य का शासन था और जहां का शासक था एक महावीर धर्मपुरुष सम्राट नागभट्ट प्रतिहार।
अरबी सेना का नागभट्ट के साथ युद्ध हुआ जिसमे अरबी सेना को वापस लौटना पडा क्योंकि नागभट्ट ने उनका कडा प्रतिकार किया था,परन्तु वे लौट कर पूर्ण शक्ति के साथ आयेंगे ये निश्चित था। सम्पूर्ण भारत पर अब अरबो के भीषण आक्रमण से होने वाले महाविनाश का खतरा मंडराने लगा,और सम्पूर्ण भारत की जनता ये प्रतीक्षा करने लगी की कोई अवतारी पुरुष उन्हें इस खतरे से बचाए…..
उन दिनों चित्तोर और मेवाड़ से मौर्य साम्राज्य को हटाकर नागदा के गहलोत वंशीय बाप्पा रावल ने वहा अपना अधिकार जमा लिया था ,नागभट्ट की तरह वो भी अरबो के संभावी खतरे को जानता था , इसीलिए उसने अरबो के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा स्थापित किया जिसमे अनेक पूर्व ,पश्चिमी,उत्तर और दक्षिणी राजाओ ने हिस्सा लिया।
नागभट्ट को ये पता चलते ही उसने अपनी सारी सेना और शक्ति लेकर वो बाप्पा रावल के साथ हो लिया । चालुक्यो ने अपने युवा युवराज अव्निजनाश्रय पुल्केशी को भी भारी सेना के साथ नागभट्ट के साथ भेज दिया और इस प्रकार एक महान सेना का गठन हुवा जिसकी संख्या लक्षावधि थी। मारवाड़ के आसपास सन 736 ई. में अरबो की विशाल सेना से हिन्दुओ की इस सेना का जिसका नेतृत्व नागभट्ट और बाप्पा रावल कर रहे थे भीषण संग्राम हुआ जिस संग्राम का वर्णन देवासुर संग्राम से करना उचित होंगा। दिन ढलने से पूर्व ही अरबो की सेना की मुख्य टुकड़ी काट कर फेक दी गयी, सूर्यास्त होने से पूर्व इने गिने अरबी सैनिको को छोड़ के बाकी सारे वध कर दिए गए ,जुनैद अपने अंगरक्षको के साथ भाग निकला ,युद्ध में आये हुए घावों के कारण उसी रात उसकी मृत्यु हो गयी । सम्पूर्ण अरेबिया में उनके बड़े सेनापति के अपनी सेना के साथ मारे जाने से हाहाकार मच गया ।
बाप्पा रावल ने युद्ध में विजय प्राप्त होने के पश्चात सिंध पर आक्रमण कर वहा भी मुसलमानों को उखाड़ फेका।सिन्धु नदी को लांघकर इरान तक प्रदेश को विजय कर,और वहा के सुलतान हैबत्खान की पुत्री से विवाह कर बाप्पा रावल ने संन्यास ले लिया। अरबो की भारत में भीषण पराजय होने से उनकी प्रतिष्ठा को कलंक लग गया था जिसे धोकर उस खोयी हुयी प्रतिष्ठा को प्राप्त करने और प्रतिशोध की भावना से अरब भारत के विरुद्ध एक दूसरा अभियान छेड़ने के लिए शाक्ति संचय में लग गए।
उन्होंने इरान,ईराक,इजिप्त आफ्रिका आदि से सेनाये और सेनानायको को इकठ्ठा किया और तामीम के नेतृत्व में भारत तथा नागभट्ट की और कूच कर दिया । अत्यंत दूर दृष्टी रखने वाले नागभट्ट ये जानते थे की ये एक ना एक दिन होना ही था,इसलिए वे दक्षिण में राष्ट्रकूट से हो रहे युद्धों को छोड़कर वापस उज्जैन आये और वहा से सीधे चित्तौर पहुचे जहा बाप्पा रावल का पुत्र खुमान रावल राज्य करता था।
नागभट्ट ने खुमान को उसके पिता बाप्पा रावल ने किये हुए संयुक्त युद्ध को याद दिलाया और पुनः एक बार वैसा ही मोर्चा तथा सेना संगठन अरबो के विरुद्ध करने का आवाहन किया जिसे खुमान ने स्वीकार किया ,एक बार फिर पुल्केशी परमारों ,सोलंकियो ने मोर्चे में सहभाग लिया और महासेना का गठन हुआ ।
इस बार मोर्चे का नेतृत्व पूर्ण रूप से नागभट्ट के हाथ में था ,नागभट्ट ने अनोखी सोच सोची की इस से पहले की शत्रु हम पर वार करे हम खुद ही शत्रु पर कूच करे ….
इस से पहले की अरबी सेना सिन्धु नदी को लांघ पाती नागभट्ट ने उन पर आक्रमण किया ,जो युद्ध कुछ सप्ताह बाद होना था वो कुछ पहले हो जाने से अरब चकित हो गए ,भीषण संग्राम में रणभूमि म्लेच्छो के रक्त से तर हुयी …..
सूर्यास्त होने से पूर्व तामीम का शीश हवा में लहरा गया और सेना नायक की मृत्यु होने से युद्ध में अरबो की पूर्ण रूप से पराजय हुयी , भागते हुए अरबो का राजपूत सेना ने कई दूर तक पीछा किया ,कई स्थानों पर अरब वापस खड़े होते गए और उखड़ते गए।
मुस्लिम इतिहासकारों ने अरबो की इस पराजय का वर्णन “फुतुहूल्बल्दान” नामक ग्रन्थ में किया है जिसमे अरब लिखते है की हिन्दुओ ने अरबी मुसलमानों के लिए थोड़ी भी जमीं नहीं छोड़ी इसलिए उन्हें भागकर दरिया के उस पार एक महफूज नगर बसाना पड़ा|
बार बार भारत में अपनी सेना की हानि होने की वजह से अपनी बची हुयी प्रतिष्ठा वापस मिलाने अरबो ने ये निश्चय कर लिया की भारत के किसी भी हिस्से को अब छुआ नहीं जाए और इसीलिए अगले 350 सालो तक अरबो ने भारत खंड में पैर नहीं रखा। और इस प्रकार प्रतिहार नागभट और बाप्पा रावल ने अपने भूमि और धर्म की रक्षा की।
आज इस घटना और हमारे बिच दीर्घ काल बित गया है , कल्पना करना भी भयावह है की ये लोग यदि उस वक्त राज्यों में बटे भारत को एक कर अरबो के विरुद्ध ना खड़े होते तो आज हम कौन होते,क्या कर रहे होते और किस हाल में होते…और इसीलिए हमें उन धर्मवीरो का अहसान मानना चाहिए।
अरबी राक्षसों के मुह में जाने से प्रतिहारो ने हिन्दुभूमि को बचाया और अपने आप को आदिवाराह की उपाधि दी। आज भी हमारी भूमि अधर्मियों के चंगुल में फसी हुयी है और जर्वत है नागभट्ट जैसे “आदिवाराह” की , जो की अधर्मियों का नाश कर धर्म की पताका फहराये।।
जय भवानी।।
जय नाभट्ट।।
जय बप्पा रावल।।

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