Sunday 29 May 2016

उधम सिंह

मित्रो सन 1919 को एक करूर अंग्रेज़ अधिकारी
भारत मे आया था जिसका नाम था डायर !
अमृतसर मे उसकी पोस्टिंग की गई थी और उसने
एक रोलेट एक्ट नाम का कानून बनाया जिसमे
नागरिकों के मूल अधिकार खत्म होने वाले थे !
और नागरिकों की जो थोड़ी बहुत बची कूची
आजादी थी वो भी अंग्रेज़ो के पास जाने
वाली थी ! इस रोलेट एक्ट का विरोध करने के लिए 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग मे एक बड़ी सभा आयोजित की गई थी ! जिसमे 25000 लोग शामिल हुए थे ! उस बड़ी सभा मे डायर ने अंधाधुंध गोलियां चलवायी थी ! अगर आप मे से किसी ने पुलिस या सेना मे नोकरी की हो तो आप अंदाजा लगा सकते हैं ! 15 मिनट के अंदर 1650 राउंड गोलियां चलवाई थी डायर ने ! और 3000 क्रांतिकारी वहीं तड़प तड़प के मर गए थे ! आप मे से किसी ने जलियाँवाला बाग देखा हो
तो वहाँ अंदर जाने और बाहर आने के लिए एक ही
दरवाजा है वो भी चार दीवारी से घिरा हुआ
है और दरवाजा भी मुश्किल से 4 से 5 फुट चोड़ा
है ! उस दरवाजे के बाहर डायर ने तोप लगवा दी
थी ताकि कोई निकल के बाहर न जा पाये ! और
अंदर उसके दो कुएं है जिसको अंधा कुंआ के नाम से जाना जाता है ! 1650 राउंड गोलियां जब. चलायी गई ! जो लोग गोलियों के शिकार हुये
वो तो वही शहीद हो गए और जो बच गए
उन्होने ने जान बचाने के लिए कुएं मे छलांग लगा
दी और कुंआ लाशों से भर गया !
और 15 मिनट तक गोलियां चलाते हुए डायर वहाँ
से हँसते हुए चला गया और जाते हुये अमृतसर की
सड्को पर जो उसे लोग मिले उन्हे गोलियां मार
कर तोप के पीछे बांध कर घसीटता गया ! इसके
लिए उसे अँग्रेजी संसद से ईनाम मिला था उसका
प्रमोशन कर दिया गया था और उसको भारत से
लंदन भेज दिया गया था और बड़े ओहदे पर !
उधम सिंह उस वक्त 11 साल के थे और ये ह्त्याकांड उन्होने अपनी आंखो से देखा था ! और उन्होने संकल्प लिया था संकल्प ये था जिस तरह डायर ने मेरे देश वासियो को इतनी क्रूरता से मारा हैं इस डायर को मैं जिंदा नहीं छोड़ूँगा ! यही
मेरी ज़िंदगी का आखिरी संकल्प हैं ! आपको एक
और बात मालूम होगी उधम सिंह की वह घर से
गरीब थे माता पिता का साया उनसे उठ चुका
था आनाथ आश्रम मे पल कर बड़े हुये थे ! बड़े भाई थे उनकी मौत हो चुकी थी किसी बीमारी से !
अब आर्थिक हालत अच्छे नहीं थे संकल्प ले लिया
था डायर को मारने का ! उसके लिए योजना
बनाई लंदन जाने की ! उसके लिए पैसे नहीं थे ! तो उन्होने सोचा मैं किसी आगे हाथ फैलाऊँ इससे
अच्छा खुद मेहनत-मजदूरी करूँ ! फिर उन्होने
carpenter (लकड़ी का काम किया) ! और कुछ
पैसे कमा अमेरिका गए अमेरिका से फिर लंदन गए !लंदन जाकर फिर किसी होटल मे नोकरी की
पानी पिलाने की ताकि कुछ पैसे इकठे हो और
उससे बंदूक खरीदी जा सके !
और ये सब काम करते करते शहीदे आजम उधम सिंह को 21 साल लग गए पूरे 21 साल ! 1919 मे
जलियाँवाला बाग हत्याकांड हुआ था और
1940 मे पूरे 21 साल बाद उन्होने अपना संकल्प पूरा किया 21 साल तक वो मेहनत करते रहे,इधर उधर भागते रहे ,जिंदा रहे सिर्फ अपना संकल्प पूरा करने ले लिए !
अंत 1940 मे Caxton Hall एक जगह है लंदन मे वहाँ डायर को सम्मान दिया जा रहा था मालाएँ
आदि पहनाई जा रही थी उधम सिंह वहाँ पहुंचे थे
और अपने साथ लाई किताब मे छिपी बंदूक
निकाल एक साथ 3 गोलियां डायर के सीने मे
उतार दी ! 3 गोलियां मार कर एक ही वाकय
कहा था कि आज मैंने 21 साल पहले लिया अपना
संकल्प पूरा कर लिया है ! और मैं अब इसके बाद एक मिनट जिंदा नहीं रहना चाहता ! तो जब
उन्होने बंदूक अंग्रेज़ अधिकारी को सोंपी तो
अंग्रेज़ अधिकारी के हाथ कांप रहे थे ! उसको लग
रहा था कहीं मुझे भी न मार दे ! तो उधम सिंह ने
कहा घबराओ मत मेरे तुमसे कोई दुश्मनी नहीं है
मेरी तो डायर से दुश्मनी थी जिसने मेरे देश के
3000 बेकसूर लोगो को तड़पा -तड़पा कर मारा
था !
तो मित्रो हमारे क्रांतिकारियों का इतना
ऊंचा आदर्श था जो संकल्प लिया है उसी की
पूर्ति के लिए जीवन लगा देना है उसके लिए बेशक
10 साल लगे 15 साल लगे ! 20 लगे 21 साल लगे ! ये प्रेरणा हम सबको शहीदे आजम उधम सिंह के जीवन से लेनी चाहिए ! माँ भारती के इस पुत्र को दिल से सलाम !
वन्देमातरम !

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