# भारतीय_नववर्ष_का_प्राकृतिक_एवं
_वैज्ञानिक_आधार :
१ भारतीय नव वर्ष के आगमन का सन्देश प्रकृति का कण कण देता है पुरातन का संपन और नवीन का सृजन प्रकृति का हर एक कोना कहता है, वृक्ष पेड पौधे अपनी पुरानी पत्तियो, छालो से मुक्ति पा कर नवीन रूप से पल्लवित होते है।
२ महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने प्रतिपादित किया है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से दिन-मास-वर्ष और युगादि का आरंभ हुआ है। युगो मे प्रथम सतयुग का आरंभ भी इसी दिन से हुआ है। कल्पादि-सृष्ट्यादि-युगादि आरंभ को लेकर इस दिवस के साथ अति प्राचीनता जुडी हुई है। सृष्टि की रचना को लेकर इसी दिवस से गणना की गई है, लिखा है-
चैत्र-मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेहनि ।
शुक्लपक्षे समग्रे तु तदा सूर्योदये सति ।।
भास्कराचार्य ने इसी दिन को आधार रखते हुए गणना कर पंचांग की रचना की जो की विभिन्न ग्रहो, चंद्रमा एवं सूर्य की गति एवं दिशाओ का उतना ही प्रमाणिकता से निर्धारण करता है जितना आधुनिक सैटलाईट।
३ हमारे हिन्दुस्थान मे सभी वित्तीय संस्थानो का नव वर्ष अप्रैल से प्रारम्भ होता है यह समय दो ऋतुओ का संधिकाल है। इसमे राते छोटी और दिन बडे होने लगते है, ठंढ की समाप्ति और ग्रीष्म का प्रारंभ अत्यंत ही मधुर और।आनंददायक अनुभव देता है।
४ इसी समय बर्फ पिघलने लगती है। आमो पर बौर आने लगता है। पेडो पर नवीन पत्तियो और कोपलों का आगमन होता है.. पतझड खत्म होता है और बसंत की शुरुवात होती है। प्रकृति मे हर जगह हरियाली छाई होती है प्रकृति का नवश्रृंगार होता है।
५ आकाश व अंतरिक्ष हमारे लिए एक विशाल प्रयोगशाला है। ग्रह-नक्षत्र-तारों आदि के दर्शन से उनकी गति-स्थिति, उदय-अस्त से हमें अपना पंचांग स्पष्ट आकाश में दिखाई देता है। अमावस-पूनम को हम स्पष्ट समझ जाते हैं। पूर्णचंद्र चित्रा नक्षत्र के निकट हो तो चैत्री पूर्णिमा, विशाखा के निकट वैशाखी पूर्णिमा, ज्येष्ठा के निकट से ज्येष्ठ की पूर्णिमा इत्यादि आकाश को पढ़ते हुए जब हम पूर्ण चंद्रमा को उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र के निकट देखेंगे तो यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा है और यहां से नवीन वर्ष आरंभ होने को १५ दिवस शेष है। इन १५ दिनों के पश्चात जिस दिन पूर्ण चंद्र अस्त हो तो अमावस (चैत्र मास की) स्पष्ट हो जाती है और अमांत के पश्चात प्रथम सूर्योदय ही हमारे नए वर्ष का उदय है। इस प्रकार हम बिना पंचांग और केलेंडर के प्रकृति और आकाश को पढकर नवीन वर्ष को सहज ही प्राप्त कर लेते है, ऐसा दिव्य नववर्ष दुर्लभ है।
६ ये भारतीय नव वर्ष की वैज्ञानिक प्रमाणिकता ही है जो किसी के नाम का मोहताज नही बल्कि वैज्ञानिक गणनाओ से शुरू होता है जबकि सभी नव वर्ष बिना किसी वैज्ञानिकता के किसी धर्मगुरु या प्रवर्तक के जन्म से प्रारंभ कर दिए गए।
#७ स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात नवम्बर १९५२ में वैज्ञानिको और औद्योगिक परिषद के द्वारा पंचांग सुधार समिति की स्थापना की गयी । समिति के १९५५ में सौंपी अपनी रिपोर्ट में विक्रम संवत को भी स्वीकार करने की सिफारिश की। किन्तु, तत्कालिन प्रधानमंत्री पं. नेहरू के आग्रह पर ग्रेगेरियन केलेण्ड़र को ही राष्ट्रीय केलेण्ड़र के रूप में स्वीकार लिया गया। आप ही सोचे क्या जनवरी के माह मे ये नवीनता होती है नही तो फिर नव वर्ष कैसा.. शायद किसी और देश मे जनवरी मे बसंत आता हो तो वो जनवरी मे नव वर्ष हम क्यूँ मनाये??
वर्तमान में एक कुप्रथा और चल पड़ी है।
मुर्ख दिवस मानाने की वो भी भारतीय नव वर्ष के शुरुवात में और
# बौधिक_गुलाम लोग सबको अप्रैल फूल बनाते हैं.अर्थात अंग्रेजो और पश्चिम ने ये सुनिश्चित कर दिया है तुम मुर्ख हो और खुद के भाई बहनों को नव वर्ष में शुभकामना सन्देश भेजने की बजाय मुर्ख कहो और मुर्ख बनाओ और मुर्ख रहो..इसी का परिणाम है की आजादी के वर्षों बाद भी हमारी बौधिक गुलामी नहीं गयी जिस नव वर्ष को हमे पूजा पाठ और खुशहाली से मनाना चाहिए उस दिन हम एक दुसरे की मुर्खता का उपहास करते हैं.. हम चाहे जितने भी तथाकथित गुलाम यूरोपियन माडर्न हो जाएँ मगर बच्चे के जन्म से लेकर, घर खरीदना, सामान खरीदना, शादी विवाह, मृत्यु या जीवन के हर अवसर पर भारतीय पंचांग पर आश्रित है जो भारतीय नव वर्ष पर आधारित है मगर उसी दिन हम अपने द्वारा अनुसरित की जा रही मान्यताओं का अप्रेल फूल (यूरोपियन इसे फूल इंडियन ही कहते होंगे) उपहास उड़ाते हैं ये कितनी बड़ी विडम्बना है.. चलिए आप सभी को अभी से ही हिन्दू नव वर्ष की ढेरों शुभकामनायें आशा करूँगा की ये नव वर्ष आप सभी के जीवन में अपार हर्ष और खुशहाली ले कर आये..
भारतीय पंचांग महीनो के नाम और पश्चिम में कैलेंडर में उस माह का अनुवाद
चैत्र--- मार्च-अप्रैल,
वैशाख--- अप्रैल-मई,
ज्येष्ठ---- मई-जून,
आषाढ--- जून-जुलाई,
श्रावण--- जुलाई – अगस्त,
भाद्रपद- अगस्त –सितम्बर,
अश्विन्--- सितम्बर-अक्टूबर,
कार्तिक--- अक्टूबर-नवम्बर,
मार्गशीर्ष-- नवम्बर-दिसम्बर
पौष--दिसम्बर -जनवरी,
माघ---- जनवरी –फ़रवरी,
फाल्गुन-- फ़रवरी-मार्च।
# जिज्ञासा
१ जनवरी को नववर्ष मानने वालें कोई तार्किक/तथ्यात्मक सत्य तो बतलाएं?? या हम भारतीय भेड़ चाल जैसे किसी रोग से ग्रसित है??
स्वयं की गौरवशाली संस्कृति और आस्थाओ का कोई औचित्य, कोई सम्मान नहीं??
जब हम ही अपनी वास्तविक आस्था/संस्कृति का सम्मान नही करेंगे तो उसका सम्मान और सरंक्षण कौन और क्यों करेगा??
कब स्वतंत्र होंगा, भारतीयों का जीवन और मन/मस्तिष्क??
अंग्रेजियत की अंधी नकल को ही बुद्धिजीवी अथवा आधुनिक हो जाने का प्रमाण माने जाने वाली कुंठाग्रस्त मानसिकता से??
जय सनातन ज्ञान- सदा साश्वत अकाट्य विज्ञान।
वंदे मातरम् । जय श्री राम ।।
Sunday, 1 January 2017
भारतीय नव वर्ष का वैज्ञानिक महत्व
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